नित खरसान लोहाघुन छूटे, नित की गोष्ट माया मोह टूटे । जैसे लोहे के औजार में हवा और पानी के संयोग से जंग लग जाता है परन्तु उसे मांजते रहो तोह जंग छूटता रहता है और औजार चमकता रहता है । वैसे ही हमारे मन की दशा है । पूर्व वासनाएँ, मन इंद्रिय, विषय विकारों, प्राणी तथा नाना व्यवहार के संबंध में मनुष्य के मन में मलिनता आने की संभावना बनी रहती है । इनसे साधक तभी बचा रह सकता है जब वह निरन्तर साधु संतों सज्जनों की संगत करे और उनसे स्वरूप ज्ञान, सदाचार और सद्गुणों की चर्चा करता व सुनता रहे । संत सज्जनों के उत्तम आदर्श देखने व उनकी वाणियों को सुनकर उनका मनन करने से साधक का मन शुद्ध बना रहता है । गृहस्थ भक्तों से कहा जाता है कि वह प्रतिदिन अपने घर में अपने पूज्य सन्तों के ज्ञान उपदेश की वार्ता एवं सत्संग करते रहें । इन बातों का रोज़ रोज़ उनके मन पर प्रभाव पड़ेगा । परन्तु बोहत कम ही साधक ऐसा करते हैं । हर गृहस्थ को अपने घर में नित्य एक समय सत्संग का आयोजन करना चाहिए और पूरे परिवार को इसका लाभ लेना चाहिए अगर आस पड़ोस के लोग भी इसमें शामिल हों तोह और भी अच्छा है । फिर गांव या मोहल्ले में भी सत्संग ...
कबीर विज्ञान आश्रम, बीरापुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, प्रथम सतगुरू मदनपति साहिब, वर्तमान सतगुरू वैराग दास साहिब