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एक अज्ञान के कारण सभी योग्यताएं व्यर्थ चली जाती हैं ।



नौ मन दूध बटोरि के, टिपके किया बिनाश ।
दूध फाटि काँजी भया, हुवा घृत का नाश ।।

नौ मन दूध इकट्ठा किया गया, परन्तु उसमें सिरके आदि खट्टे पदार्थ की कुछ बूंदे डाल दी गयी तोह सारा दूध ही नष्ट हो गया । क्योंकि दूध फटकर खट्टा पानी हो गया और घी का नाश हो गया ।
इस साखी में कबीर साहिब ने नौ मन दूध इकट्ठा करने की बात कही है, जिसका लाक्षणिक अर्थ है पांच तत्व, तीन गुण युक्त अष्टधाप्रकृति और नौंवा जीव अर्थात अष्टधा प्रकृति युक्त मनुष्य देह में जीव निवास करता है । परन्तु अज्ञान का टिपका पड़ने से सारी योग्यताएं व्यर्थ हो जाती हैं ।

अगर नौ मन दूध का अष्टधा प्रकृति और जीव से अर्थ न भी लिया जाए तोह भी काम चल जाता है । नौ मन दूध का लाक्षणिक अर्थ है पूरी योग्यता । इसमें कारण है 1 से 9 तक के संख्या अंक, इसके बाद 0 होता है, यही घूम घुमाकर अंकों की संख्या बनाते हैं । इसलिए नौ मन संख्या की अधिकता का सूचक है । जैसे कहावत है " न नौ मन तेल इकठ्ठा होगा और न राधा नाचेगी " । आठ मन या दस मन कहने का प्रचलन नहीं है किंतु नौ मन कहने का प्रचलन है । "नौ मन दूध बटोरि के" का सरल लाक्षणिक अर्थ है कि मानव जीवन की सारी योग्यता प्राप्त होने पर भी एक अज्ञान के कारण भटकता है । उदाहरण कितना सुंदर और सटीक है कि बोहत सारा दूध इकठ्ठा किया गया और उसमें कुछ बूंदें खट्टा पदार्थ डाल दिया गया तोह वह न दूध रहा, न दही और न ही उसका घी बनेगा । वह सबका सब नष्ट हो गया ।

इसी प्रकार इस सुंदर मनुष्य देह की योग्यता एक अज्ञान के कारण पूरी की पूरी व्यर्थ जाती है । अज्ञान के कारण मनुष्य अपनी उत्तम योग्यता का दुरुपयोग करता है । किसी वस्तु के सदुपयोग के मूल में ज्ञान है और दुरुपयोग के मूल में अज्ञान है । सदुपयोग कल्याणकारी व दुरुपयोग विनाशकारी है । नौ मन दूध में कोई खट्टा पदार्थ डाल दे तोह सारा का सारा दूध खराब हो जाये तोह कितना कष्ट होगा । जिसका दूध खराब हुआ हो उसे बोहत दुख होगा । परन्तु मनुष्य देह की इस उत्तम योग्यता का हम अज्ञानवश खिलवाड़ करते हैं । इसे मलिन वासनाओं में, व्यर्थ बकवाद में, आलस्य प्रमाद में खो देते हैं । इसलिए न हम व्यवहार में सुखी होते हैं और न ही परमार्थ का लाभ ले पाते हैं । अतएव हमें अपने समय और शक्ति का सदुपयोग करना चाहिए । इसलिए हमें सच्चे सद्गुरु सन्तों की शरण में जाकर अपने मन के अज्ञान को समाप्त करना चाहिए और अपने आप को समझाना चाहिए कि मैं कौन हूँ, किसमें फंसा हूँ, मेरे मानव जीवन का लक्ष्य क्या है, मैं दुखी क्यों हूँ और इन सबसे छुटकारा कैसे हो ।
साहिब बंदगी

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