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जीव हत्या का पाप नहीं छूट सकता, चाहे करोड़ों बार तीर्थ व दान पुण्य कर लिए जाएं ।



जीव मति मारो बापुरा, सबका एकै प्राण ।
हत्या कबहूँ न छूटिहैं, जो कोटिन सुनो पुराण ।।
जीव घात न कीजिए, बहुरि लैत वह कान ।
तीर्थ गये न बाँचिहो, जो कोटि हीरा देहु दान ।।

सामान्य तोह सामान्य हैं कितने ही धार्मिक कहलाने वाले लोग मनुष्य के अलावा सभी जीवों को मारकर खाने की वस्तु समझते हैं । शायद वह मनुष्य को भी मारकर खाने की वस्तु समझते पर मनुष्य को मारकर खाना इतना सरल नहीं, इसलिए मनुष्य को छोड़ कर बाकि जीवों को खाना उन्होंने अपना धर्म बना लिया । चीता और शेर मांसाहारी प्राणी हैं वह दूसरे जीवों को मारकर खाते हैं ,केवल अपने पेट को भरने के लिए । किंतु हिसंक मनुष्य ऐसा जानवर है जो मूलतः शाकाहारी है, पर अपने जीभ के स्वाद के लिए प्राणियों को मारता है केवल अपना पेट भरने के लिए नहीं बल्कि लाशों के व्यापार करके पैसे इकट्ठे करता है ।

कितने ही चतुर लोग ईश्वर अल्लाह और देवी देवताओं के नाम पर जीव हत्या कर उनको खाते हैं और कहते हैं इससे उनको पाप नहीं लगता । उन्होंने जीव हत्या के नाम कुर्बानी और बलि रख लिए हैं । परन्तु न तोह नाम बदलने से जीव हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी और न ही तथाकथित ईश्वर और देवी देवताओं के नाम से । जीव हत्या एक क्रूरता है और यह मनुष्य के मन को क्रूर बनाता है । इसे हम मांसाहारी और शाकाहारी प्राणियों के स्वभाव से समझ सकते हैं ।

कबीर साहिब घोर मानववादी हैं । " जीव मति मारो बापुरा, सबका एकै प्राण "वह इस साखी में कह रहे हैं कि जीव हत्या मत करो, सभी जीवों में एक सी जान होती है, सभी को अपनी जान प्यारी है । सभी को दुख होता है । जीवों को पीड़ा देना मानवता के विरुद्ध है । यदि हम किसी को पीड़ा देंगे तोह वह भी अपना बदला लेना चाहेगा । मनुष्य मात्र ही नहीं सभी जीव अपने सताने वालों से सावधान रहते हैं व मौका पाकर बदला लेना चाहते हैं । " बहुरि लैत है कान " यह स्वभाविक कथन है कि जीव के बदला देने की इच्छा जन्म जन्मांतर तक चलती रहती है । अगर इस जन्म में किसी जीव की हत्या की है तो वह जीव किसी न किसी दिन व जन्म में आपसे बदला जरूर लेगा ।

लोगों ने यह ढकसोला बना रखा है कि चाहे जितने भी पाप हो गये हों, परन्तु यदि पंडितों से पुराण सुन लिये जाएं , तीर्थ यात्रा कर ली जाए, ब्राह्मणों को हीरे जवाहरात, वस्त्र आदि दान कर दिये जायें तोह सभी पाप धुल जाते हैं । यह मात्र छलावा है । चालाक लोगों द्वारा भोले लोगों लोगों को मूर्ख बनाने के तरीके हैं । कबीर साहिब कहते हैं कि हत्या के पाप से तुम छूट नहीं सकते चाहे करोड़ों बार पुराण सुन लो, तीर्थ कर लो, करोड़ों बार हीरे जवाहरात दान कर दो ।

लहसुन प्याज खा कर उसकी दुर्गंधि के डकार से नहीं बचा जा सकता । उसकी दुर्गंध आ ही जाती है चाहे आप कितनी ही बार स्नान, दान, पूजा आदि क्यों न कर लो । इसी तरह किसी भी जीव की हत्या के पाप से नहीं छूटा जा सकता चाहे इसके लिए करोड़ों बार दान, पुण्य आदि कर लो । हां पाप करने के बाद अगर मनुष्य अपने पाप कर्मो से तौबा करके पूरे गुरू की शरण में जाकर, फिर अपने स्वरूप में स्थित हो जाओ तोह जन्म जन्मांतर के पाप कट जाते हैं ।
साहिब बंदगी

Comments

  1. Jiv hatya karna pap hota to bali nahi chadhaya jata

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    1. आज तक किसी भी पुराण या ग्रंथ में बलि या जीव हत्या का सहयोग नहीं किया गया है| अतः यह सब(बलि) उन्हीं लोगों का रचा हुआ जो सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचते हैं|

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  2. कोई भी देवी देवता अल्ला या किसी भी धर्म का भगवान कभी भी किसी की बलि देने से हत्या करने से किसी को दुखी करने से कष्ट देने से खुश नही होता क्योंकि यह सारा विश्व सृष्टि मानव उसी के बनाये हुए और उसी के बालक है कोई माता पिता अपने बच्चों की हत्या किसी ओर बच्चे से नही करवाना चेहेगा ऐसा कोई धर्म शास्त्र वेद महान पुरुषों में किसी ने न ऐसे कुछ ऊट पटांग नियम रीति रिवाज नही बनाये है ना ही बताये गए

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