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सत, रज व तम तीनों गुणों पर विजय प्राप्त करो ।



तामस केरे तीन गुण, भँवर लेइ तहां बास ।
एकै डाली तीन फल, भाँटा ऊख कपास ।।

तामस कहते हैं अंधकार को माया को । कबीर साहिब कहते हैं कि सत, रज और तम तीनों गुण माया के पेट में हैं । अर्थात एक माया की डाली पर यह तीन फल लगते हैं जो एक दूसरे के परस्पर विरोधी हैं । आप किसी एक शाखा पर भांटा, ऊख व कपास को लगा देखोगे तोह आश्चर्य ही होगा । माया और प्रकृति की डाली में यही बात है, इसमें परस्पर विरोधी तीन गुण एक साथ रहकर सृष्टि का संचालन करते हैं । आप जानते ही हैं तेल, बत्ती और आग तीनों परस्पर विरोधी होते हैं पर तीनों के मिलने से ही प्रकाश उत्पन्न होता है । इसी तरह सत, रज, और तम भी एक दूसरे के परस्पर विरोधी होते हुए भी संसार के कार्यों का संपादन करते हैं ।

साहिब कहते हैं कि जीव का मन भंवरा इसी त्रिगुणात्मक जगत के पदार्थों में गन्ध लेता रहता है । यह ठीक है कि सत, रज और तम तीनों गुणों के अलग अलग परिणाम हैं, पर है सभी क्षणिक । गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि सतोगुण उच्च गति को, रजोगुण मध्यम गति को और तमोगुण निम्न गति को ले जाते हैं । इसी लिए श्री कृष्ण अर्जुन को इन तीनों गुणों से अलग होकर सभी द्वंद हटाके अपने आत्म स्वरूप की ओर जाने को कहते हैं ।

प्रश्न उठता है कि ज्ञानी से ज्ञानी व्यक्ति भी जब तक शरीर में है उसको भी तीनों गुणों के अनुसार ही बर्ताव करना पड़ेगा । क्योंकि शरीर और मन तीनों गुणों के कार्य हैं । केवल समाधि काल गुणातीत अवस्था है वह कुछ समय के लिए होती है । ज्ञानी सज़्ज़न विवेक से तीनों गुणों को शोध कर उनका इस्तेमाल करते हैं । दुरुपयोग से अच्छी वस्तु भी बुरा परिणाम देती है और सदुपयोग से बुरी वस्तु भी अच्छा परिणाम देती है । अन्न अमृत है पर जब उसका दुरुपयोग किया जाए ज्यादा खा लिया जाए, गलत तरह से पका कर खा लिया जाए तोह वह ज़हर बन जाता है और स्वास्थ्य पर बुरा असर करेगा । परन्तु कालकूट एक ज़हर है पर जब उसको शोध कर औषध के रूप में इस्तेमाल किया जाए तोह वह अमृत बन जाता है ।

सतोगुण के कार्य ज्ञान, प्रसन्नता और एकाग्रता है । विवेकी मनुष्य इसका इस्तेमाल स्वरूप ज्ञान, चित्त की शुद्धता और समाधि के लिए करता है । रजोगुण का कार्य इच्छा व क्रियाशीलता है । विवेकी मनुष्य इसका इस्तेमाल विषयों से विमुख होकर जीवन निर्वाह करने व दूसरों की सेवा करने में करता है । तमोगुण का कार्य आलस्य, नींद व निष्क्रियता है । विवेकवान मनुष्य इसका इस्तेमाल अनासक्ति पूर्वक जीवन निर्वाह करने में करता है वह आलस्य नींद के वश में नहीं रहता ।

इस तरह विवेकी जीव तीनों गुणों को शोध कर उनका इस्तेमाल विषयों से विमुख होकर जीवन निर्वाह करने, समाज कल्याण के साथ अपने आत्म कल्याण के लिए करता है ।
साहिब बंदगी

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