साहु चोर चीन्है नहीं, अंधा मति का हीन ।
पारख बिना विनाश है, कर विचार होहु भीन ।।
जैसे श्रेष्ठी शब्द का अपभ्रंश होक सेठ शब्द बना है, वैसे ही साधु शब्द से साहु शब्द बना हुआ है । साहु का अर्थ होता है जो सत्य का व्यवहार करता है । सज्जन और ईमानदार को साहु कहते हैं । जो दूर दराज से माल लाकर लोगों में बेचता था और लोगों से माल लेकर दूर देश में बेचता था । उसके सत्य व ईमानदारी वाले व्यवहार के कारण उनको साहु व महाजन आदि नामों से पुकारा जाता था । पर इस बात का खेद है कि चोरी, बेईमानी के कारण आज उसी वर्ग को सबसे अधिक धोखेबाज, चोर व बेईमान समझा जाता है । यह सच है कि आज भी कितने ही व्यापारी व्यवहार में ईमानदार हैं पर चोर व बेईमान व्यापारियों के साथ उनको भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है ।
गुरू दर्जा तोह सर्वोच्च है । गुरू वह है जिसका ज्ञान सत्य हो, जिसका व्यवहार सत्य हो । पर खेद है कि गुरू के नाम से आजकल धंधेबाज और धोखेबाज अधिक हो गये हैं । वह अपने जादू से शिष्यों के सारे पाप काट देते हैं और ऋद्धि सिद्धि का दावा करके समाज को बेवकूफ बनाते हैं । वह अपने आप को ईश्वर के अवतार व प्रसिद्ध सन्तों के अवतार घोषित करते हैं । कितने ही गुरू व्यवहार में सच्चे होते हैं पर उनको जड़ चेतन का ज्ञान नहीं होता । इस कारण वह व्यवहार से सच्चे होने के बावजूद पूरे गुरू नहीं कहला सकते । क्योंकि उनके पास शिष्य का अज्ञान दूर करने की क्षमता नहीं होती ।
कबीर साहिब कहते हैं कि विवेकहीन मनुष्य सच्चे गुरू व अधूरे, धंधेबाज, धोखेबाज गुरू के बीच में परख नहीं कर पाता । बोहत बड़ी संख्या में पढ़े लिखे लोग इन धोखेबाज गुरुओं के जाल में उलझ जाते हैं । कोई विरला ही होता है जो परख से सच्चे गुरू की शरण में जाता है । कबीर साहिब ने कहा कि झूठे गुरू को दूर से ही नमस्कार कर देना चाहिए व ऐसे गुरू से नाम लेने की भूल नहीं करनी चाहिए । कबीर साहिब कहते हैं -
झूठे गुरू के पक्ष को, तजत न कीजै वार । और सच्चे गुरू के पक्ष में दीजै मन ठहराय ।
जड़ और चेतन का विचार कर के ही गुरू धारण करना चाहिए । जड़ और चेतन को एक नहीं बल्कि अलग अलग मान कर समझ लेना चाहिए । यही वास्तविक ज्ञान है । अपने स्वरूप में स्थित होना ही वास्तविक ज्ञान है, जिसे कोई विरला ही धारण करता है । अपना स्वरूप ही चेतन है और स्वरूप से अलग सब कुछ जड़ है । जो गुरू जड़ से हटा कर चेतन से जुड़ने का ज्ञान दे उसी को तन मन धन दे देना चाहिए ।
साहिब बंदगी
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