मूर्ख को समझावते, ज्ञान गाँठि का जाय ।
कोयला होय न ऊजरा, सौ मन साबुन लाय ।।
कबीर साहिब ने इस साखी में एक सरल बात पर प्रकाश किया है । वह कहते हैं कि कभी मूर्ख मनुष्य को ज्ञान उपदेश दिया जाए तोह वह उससे लाभ नहीं लेने वाला बल्कि उल्टा इसका दुरुपयोग ही करेगा । वह अच्छी सीख का या तोह सामने ही मज़ाक उड़ा देगा या पीठ पीछे मज़ाक उड़ाएगा, हंसी करेगा । सीख के उल्टे आचरण वह जग में अपनी वरियता जाहिर करेगा । ऐसे लोगों को उपदेश देने से उपदेश देने वाले के मन में असंतोष आ सकता है, उसकी शान्ति भंग हो सकती है । मूर्ख को तोह को कुछ फर्क नहीं पड़ेगा पर उपदेश देने वाले की शांति भंग हो गयी, इसी को ज्ञान गाँठि का जाना कहा जाता है ।
आप सभी जानते ही हैं कि कोयला अंदर और बाहर से काला होता है, उसे सौ मन साबुन लगा कर पानी से धोया जाए तब भी कोयला ऊजला होने वाला नहीं है । मूर्खों की यही दशा है । वह भीतर से बाहर तक काले कोयले हैं । वह शुद्ध नहीं हो सकते, चाहे उनको लाख बार उपदेश दे दिया जाए । यह कहा जा सकता है कि कोयला तोह जड़ है, मनुष्य चेतन है, वह अपनी दृष्टि बदल दे तोह अवश्य सुधर जाएगा । यह तर्क ठीक है पर फिर भी कहना पड़ता है कि कुछ लोगों को हज़ार बार सीख देने पर भी वह सुधर नहीं सकते । यह सभी सन्तों का अनुभव है । कबीर साहिब ने साखी में कहा है कि मूर्ख तोह चेत ही नहीं सकता, उल्टा चेताने वाले कि भी शांति भंग कर देता है । इसलिए गुरूजनों को चाहिए कि शिक्षा पर क्रोध करने व उसकी अवहेलना करने वाले शिष्य का त्याग कर देना चाहिए ।
"सौ मन साबुन लाये " यह एक मुहावरा है इसका यह अर्थ नहीं है कि अगर कोयले को सौ मन से ज्यादा साबुन लगा कर धोया जाए तोह शायद वह ऊजला हो जाये । इसमें सौ मन केवल सके उदाहरण है, सौ मन से कोई लेना नहीं , आप कोयले को जितनी बार मर्ज़ी साबुन लगा कर धो कर देख लो वह ऊजला नहीं होने वाला । इसी तरह मूर्ख मनुष्य का भी यही हाल है उसको चाहे एक बार ज्ञान की बात समझा दो या हज़ार बार वह ज्ञान की हंसाई ही करेगा न कि ज्ञान को धारण करेगा ।
साहिब बंदगी
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