हीरा तहां न खोलिए, जहाँ कुँजरों की हाट ।
सहजे गाँठि बांध के, लगिये अपनी बाट ।।
कबीर साहिब ने इस साखी में ज्ञान को हीरे के रूप में पेश किया है और कहा है कि हीरे को केवल पारखी की पास ही खोलना चाहिए । कुँजरों की बाट यानी सब्ज़ी बेचने वालों का बाज़ार, अब सब्ज़ी मंडी में अगर कोई जौहरी अपनी हीरे की दुकान लगाकर बैठ जाए तोह उसके हीरे वहां नहीं बिक सकते । क्योंकि वहां आने वाले लोगों के पास इतना धन नहीं होगा और न ही हीरे की परख होगी कि वह हीरे को खरीद सकें । इसी तरह जो लोग मंत्र तंत्र साधना, बाहरी पूजा, कर्मकांड आदि में उलझे हुए हैं उनके सामने जड़ चेतन, आत्म ज्ञान आदि की बातें नहीं करनी चाहिए । उनके आगे अपनी समझ व शक्ति बर्बाद नहीं करनी चाहिए । उनको इन बातों से कोई लाभ नहीं होने वाला क्योंकि उनकी विवेक शक्ति ही शुन्य हो चुकी होती है वह मिथ्या भक्ति में बोहत उलझ चुके होते हैं ।
अब प्रश्न उठता है कि जब जन साधरण के सामने ज्ञान की बात नहीं करेंगे तोह उनकी जड़ बुद्धि समाप्त कैसे होगी । बोहत से जड़ बुद्धि वाले लोग ज्ञान की बात सुनकर अपने मिथ्या भक्ति के सिद्धांतों को त्याग देते हैं । इसका जवाब यह है कि ऊपर का सवाल बिल्कुल सही है पर हर कथन के दो पक्ष होते हैं, कुँजरों की हाट में हीरे नहीं बिक सकते यह परम सत्य की बात है । भैंस के आगे बीन बजाना, अंधे के आगे रोना जैसी अनेक लकोक्तियां हैं जो समाज में प्रचलित हैं और परम् सत्य हैं । जन साधारण में सभी नहीं पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनको ज्ञान की बात समझाना अपना समय खराब करने के सामान है । तोह साहिब कहते हैं कि " सहजे गाँठि बांध के, लगिये अपनी बाट " यानी हीरे को सहजे ही समेट कर अपना रास्ता पकड़ लेना चाहिए , भैंस के आगे बीन बजाने से अच्छा है वहां से चुप चाप अपना रास्ता नाप लो ।
इस साखी का मूल भाव यह है कि आपको ज्ञान की बात जन साधारण में तो करनी ही है पर आपको यह भी देखना पड़ेगा कि जन साधारण में बहुसंख्यक लोगों का मानसिक पात्र कैसा है ? आपको योग्य व्यक्ति को व्यक्तिगत भी ज्ञान की बात समझानी पड़ सकती है ।
साहिब बंदगी
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