जैसी लागी ओर की, वैसे निबहै छोर ।
कौड़ी कौड़ी जोड़ि के, पूँजी लक्ष करोर ।।
किसी उद्देश्य या क्षेत्र में शुरू से लेकर अंत तक एक ही भाव से लगे रहने वाले बोहत कम लोग होते हैं, इसीलिए जीवन में सफलता बोहत कम लोगों को मिल पाती है । एक संगीतज्ञ से एक आदमी ने कहा कि मैं भी आपकी तरह महान संगीतज्ञ बनना चाहता हूँ तोह संगीतज्ञ ने कहा इसमें कुछ भी कठिन नहीं है तुम निरंतर लग्न से तीस पैंतीस साल संगीत में लगे रहिये आप निश्चित ही एक महान संगीतज्ञ बन जाओगे ।
जो अपने निश्चित लक्ष्य को पाने के लिए लगातार दीर्घ काल तक एक समान श्रम करता है वह एक दिन सफल हो जाता है । सन्तों की संगत पाकर लोग शुरू शुरू में भक्तिभाव में बोहत ओतप्रोत हो जाते हैं परन्तु थोड़े दिनों के बाद ही वह यह सब प्रायः भूल जाते हैं । कितने ही लोग साधना में बड़े उत्साह से लगते हैं पर उनका यह उत्साह ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता । वह पुनः मन की मलिनता में घिर जाते हैं और कहने लगते हैं कि वैराग्य, भक्ति, आध्यात्म यह अब बकवास बातें हैं । जिस किसान को केवल फसल पाने में ही आनंद आता हो, किसानी में नहीं, जिस व्यापारी को केवल मुनाफ़े में आनंद आता हो, व्यापार के श्रम में नहीं, जिस साधक को केवल साध्य पाने ही आनंद है , साधना में नहीं । वह न तोह सच्चा किसान है, न सच्चा व्यापारी और न सच्चा साधक । जिसको श्रम व साधना में आनंद आता हो वही अपनी मंजिल को सफलतापूर्वक पा सकता है ।
कबीर साहिब ने इस साखी में कहा है " जैसी लागी ओर की, वैसी निबहै छोर " ओर का अर्थ शुरू है और छोर का अर्थ अंत है । मनुष्य जिस दिशा की ओर लगता है तोह उसे चाहिए कि वह उसे छोर तक निभाये । जो उत्साह शुरू में है वही उत्साह अंत तक रहना चाहिए, यही सफलता की कुंजी है । परन्तु इसमें श्रम, लग्न के साथ साथ समय भी लगता है । आप चाहो तोह खेत में बीज बीज कर उसी दिन उसको काट भी लो, पर इसको केवल बचपना कहा जाएगा इसमें फसल नहीं मिलने वाली । साधक को चाहिए कि साधना करते रहे और साध्य की इच्छा न करे, धैर्य रखे। निरंतर साधना में लगा रहे । फिर एक दिन समय आएगा जब बीज फ़सल बन चुका होगा ।
कबीर साहिब कहते हैं " कौड़ी कौड़ी जोड़ के, पूँजी लक्ष करोर " इसमें गरीब, दीन और दुर्बल साधकों के लिए भी उन्नति की अनन्त संभावनाएं मिलती हैं । जब बच्चा स्कूल में जाता है तोह वर्णमाला के शब्दों को दस बार याद करने पर भी बार बार भूल जाता है और सोचता है कि मैं इसे याद नहीं कर सकता । परन्तु वही बच्चा एक लंबे समय के बाद किसी विश्वविद्यालय में गूढ़ रहस्य खोज़ रहा होता है । जिस मनुष्य ने कौड़ी कौड़ी जोड़ी हो उसके पास एक दिन लाख करोड़ भी बन जाता है । जब कुआ खोदना शुरू किया जाता है तोह विश्वास नहीं होता कि पानी निकल आएगा, पर निरन्तर उत्साह से किये जा रहे प्रयास के बाद पानी निकल आता है । सही दिशा में निरन्तर उत्साहपूर्वक लगे रहना, श्रम करते रहना, साधना करते रहना ही सफलता की कुंजी है । जो मनुष्य शुरू से लेकर अंत तक उत्साहपूर्वक अपने काम में लगे रहते हैं वही एक दिन मंजिल तक पहुँच जाते हैं । इसलिए साधक को निरन्तर साधना में लगे रहना चाहिए और मन में धैर्य रखना चाहिए, साधना को बीच में छोड़ देना एक सच्चे साधक की निशानी नहीं हो सकती ।
साहिब बंदगी
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