Skip to main content

सार शब्द क्या है ? जानें सार शब्द का शाब्दिक ज्ञान



शब्द स्वरूपी ज्ञान मय, दया सिंधु मति धीर ।
मदन सकल घट पूर है, करता सत्य कबीर ।।
सत्य शब्द महा चैतन्य को शब्द स्वरूप बतलाया है । सो हमें उसका ज्ञान कैसे निश्चय होगा । क्योंकि शास्त्रों ने शब्द को आकाश का गुण ठहराया है । कोई कोई सार शब्द को निर्णय भी कहते हैं ।
वह तीन प्रकार के हैं -
वर्णात्मक- जैसे अ, आ, अ: से लेकर क ख ग, घ ङ से क्ष त्र ज्ञ बावन अक्षर हैं इनको क्षर आकार कहते हैं ।
ध्वनात्मक- तत्वों के संसर्ग से होने वाले अनहद दशनाद इत्यादि तथा अक्षर "आकार" होता है , वह जीव आत्मा है वह भी इस शरीर में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार दशों इन्द्रियों और पंच वायु में व्याप्त है । इसके बिना मन बुद्धि आदि जड़ है ।
स्वयंसिद्ध- स्वतः शब्द अविनाशी विदेह स्वरूप निःअक्षर सार शब्द जो न किसी से बनता है और न ही बिगड़ता है, न ही उसका संयोग होता है और न ही वियोग, वह अखण्ड हर वक्त अपने स्वशक्ति से हमेशा गर्जना कर रहा है और कर्ता है , उसका कोई आदि अंत नहीं है ।
शब्द अखण्ड और सब खण्डा ।
सार शब्द गर्जे ब्रह्मण्डा ।।
वह सब आत्माओं में समाया हुआ है । उसके बिना कोई आत्मा प्रकाशित नहीं हो सकती । वह सबका मूल है जैसे बल्ब आउट तार सब जगह है, पर पावर यानी सत्ता के बिना सब बेकार है । तो पावर हाऊस कहीं है । उसी तरह आत्मा परमात्मा है । सुरति जीव है हर माया प्रपंच में फंसी है । मल संयुक्त बंधन रूप है । उसे इस बंधन से दूर करना है ।
आकाश उसी सार शब्द में समाकर अंत हुआ है , उसके ऊपर कोई शक्ति नहीं है । न समझने वाले शब्द को आकाश का गुण कह सकते हैं । कारण उन्हें पूरे गुरू का ज्ञान नहीं मिला । नाना ग्रन्थ, मंत्र, तंत्र सब बावन अक्षरों के अंतर्गत हैं इनको न समझने वाले इसी को।दिन रात जपते हैं, इसके जपने से सत्य वस्तु का बोध नहीं होगा । सार शब्द किसी किसी को प्राप्त होता है । सबके लिए सार शब्द नहीं है । तन, मन, धन की बाजी लगी हो उसके वास्ते है ।
बावन का ज्ञान प्राप्त कर लो, लेकिन इनमें उलझो नहीं इनमें फँसो नहीं । सार शब्द को छश्रोत को ढूंढना चाहिए कि आत्मा से शब्द निकले, जब आत्मा का खोज होगा तोह परमात्मा का भी खोज होगा । जीवात्मा मल संयुक्त है और परमात्मा शुद्ध चैतन्य मल रहित निर्मल निःअक्षर रूप है । जिस वस्तु की जैसी खान होगी वैसे ही उस खान के टुकड़े होंगे ।
सोने की खान से सोना, हीरे की खान से हीरा, कोयले की खान से कोयला उसी तरह परमात्मा चैतन्य शब्द स्वरूप से जीवात्मा भी शब्द स्वरूप है ।
जैसी अंशी वैसा अंश, नीम से नीम आम से आम ।
भव सागर जल विष भरा, मन नहीं बांधे धीर ।
शब्द स्नेही पीव मिला, उतरा पार कबीर ।।
पांचों तत्वों में आवाज , बाजों में आवाज, भाई बहन माता पिता सब शब्द ही से पुकारे जाते हैं तथा पहिचाने जाते हैं । इसलिए सबका मूल शब्द ही ठहरा । वही आदि में और वही अंत में रहेगा । उसी सार शब्द को परख कर अपना कल्याण करना चाहिए । सत्य असत्य का निर्णय जड़ चेतन का निर्णय यही सच्चा निर्णय है ।
शब्द शब्द सब कोई कहे, वह तो शब्द विदेह ।
जिह्वा पर आवे नहीं, निरख परख कर लेह ।।
वह जिह्वा पर न आने वाला स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण, कैवल्य से निराला परा, पश्यन्ति मध्यम से रहित पंच कोश पिंड ब्रह्मंड से अलग विदेह सार शब्द है ।
उसे सुरति द्वारा ही निरख परख किया जाता है । सार शब्द ही एक सत्य है, इसे निश्चय जानना चाहिए
भूल मिटे गुरू मिले, पारखी पारख देई लखाई ।
कहे कबीर भूल की औषधि, पारख सब की भाई ।।
साहिब बंदगी

Comments

  1. Mujhe wo vidhi chahye pls Mera margdarshan kre..

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप के सभी हल supremegod.org पर मिलेगा

      Delete
    2. Supremegod.org par sant rampal ji ki website hai aur kaha bataya hai sar shabad aur usa japna ki vidhi

      Delete
    3. कहीं फँस न जाना भाई। नहीं तो पता चले कि सरग से गिरे खजूर पे अटके। क्योंकि सार शब्द के बारे में तो यह कहा गया है कि उसका स्पर्श करते ही मोह का बन्धन छूट जाता है और प्राणी को अपने निज नाम (आत्म स्वरूप) का बोध हो जाता है।

      Delete
  2. Fir Geeta me ye gyaan ki ye vidhi ku nai btaayi gayi

    ReplyDelete
  3. आपको supremegod.org पर पता चलेगा विजिट करे

    ReplyDelete
  4. To fir iske baare or kahin Kyu nahi likha
    Please bataiye

    ReplyDelete
  5. We can not write and neither tell by mouth it is happening in every body but seeking by very a few person which know that can tell ...

    ReplyDelete
  6. Sach bataya hai apne yahi hai niakshar savd. Vidhi bhi batao aap.

    ReplyDelete
  7. Nikashar sabd ko koi form ,size dige to wo akshar brahm kee shreni yaan gyan main aa jata aur wo apni state sata kho deta.
    Saar sabad nirgun andvsagun se uper blissfull state ko bolte use geeta main sat chit asnd maye sab ko dharn kiya hua kshar aur akshar ka parm karan batya hai.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Ni akshar ko japna ki vidhi bhi batayein har koi gol gol batein karta hai koi sat kabir koi om tat sat aur koi ram koi ni akshar koi alh naam bata ta hai plz write in simple words kya hai sar shabad aur kaisa japa jaya

      Delete
    2. Kahat kabir suno bhai sadho youtube channel p btaya gaya h

      Delete
  8. Satguru vairag saheb abhi ashram m rhte hai

    ReplyDelete
  9. Mujhe wahan ka address de dijiye please

    ReplyDelete
  10. सत्य वचन सहृदय प्रणाम भगवन जी 🙏

    क्षमा 🙏
    निः शब्द 🙏
    शिवोहम ,एक ओमकार ॐ ,अद्वैत अनाहद नाद स्वरूप को मेरा प्रणाम🙏

    ReplyDelete
  11. Thanks and I have a super present: How Much Is A Complete House Renovation house hunters renovation

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

मूर्ख को ज्ञान उपदेश देने का कोई फायदा नहीं होने वाला ।

मूर्ख को समझावते, ज्ञान गाँठि का जाय । कोयला होय न ऊजरा, सौ मन साबुन लाय ।। कबीर साहिब ने इस साखी में एक सरल बात पर प्रकाश किया है । वह कहते हैं कि कभी मूर्ख मनुष्य को ज्ञान उपदेश दिया जाए तोह वह उससे लाभ नहीं लेने वाला बल्कि उल्टा इसका दुरुपयोग ही करेगा । वह अच्छी सीख का या तोह सामने ही मज़ाक उड़ा देगा या पीठ पीछे मज़ाक उड़ाएगा, हंसी करेगा । सीख के उल्टे आचरण वह जग में अपनी वरियता जाहिर करेगा । ऐसे लोगों को उपदेश देने से उपदेश देने वाले के मन में असंतोष आ सकता है, उसकी शान्ति भंग हो सकती है । मूर्ख को तोह को कुछ फर्क नहीं पड़ेगा पर उपदेश देने वाले की शांति भंग हो गयी, इसी को ज्ञान गाँठि का जाना कहा जाता है । आप सभी जानते ही हैं कि कोयला अंदर और बाहर से काला होता है, उसे सौ मन साबुन लगा कर पानी से धोया जाए तब भी कोयला ऊजला होने वाला नहीं है । मूर्खों की यही दशा है । वह भीतर से बाहर तक काले कोयले हैं । वह शुद्ध नहीं हो सकते, चाहे उनको लाख बार उपदेश दे दिया जाए । यह कहा जा सकता है कि कोयला तोह जड़ है, मनुष्य चेतन है, वह अपनी दृष्टि बदल दे तोह अवश्य सुधर जाएगा । यह तर्क ठीक है पर फिर...

जीव हत्या का पाप नहीं छूट सकता, चाहे करोड़ों बार तीर्थ व दान पुण्य कर लिए जाएं ।

जीव मति मारो बापुरा, सबका एकै प्राण । हत्या कबहूँ न छूटिहैं, जो कोटिन सुनो पुराण ।। जीव घात न कीजिए, बहुरि लैत वह कान । तीर्थ गये न बाँचिहो, जो कोटि हीरा देहु दान ।। सामान्य तोह सामान्य हैं कितने ही धार्मिक कहलाने वाले लोग मनुष्य के अलावा सभी जीवों को मारकर खाने की वस्तु समझते हैं । शायद वह मनुष्य को भी मारकर खाने की वस्तु समझते पर मनुष्य को मारकर खाना इतना सरल नहीं, इसलिए मनुष्य को छोड़ कर बाकि जीवों को खाना उन्होंने अपना धर्म बना लिया । चीता और शेर मांसाहारी प्राणी हैं वह दूसरे जीवों को मारकर खाते हैं ,केवल अपने पेट को भरने के लिए । किंतु हिसंक मनुष्य ऐसा जानवर है जो मूलतः शाकाहारी है, पर अपने जीभ के स्वाद के लिए प्राणियों को मारता है केवल अपना पेट भरने के लिए नहीं बल्कि लाशों के व्यापार करके पैसे इकट्ठे करता है । कितने ही चतुर लोग ईश्वर अल्लाह और देवी देवताओं के नाम पर जीव हत्या कर उनको खाते हैं और कहते हैं इससे उनको पाप नहीं लगता । उन्होंने जीव हत्या के नाम कुर्बानी और बलि रख लिए हैं । परन्तु न तोह नाम बदलने से जीव हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी और न ही तथाकथित ईश्वर और द...