शब्द हमारा तू शब्द का, सुनि मति जाहो सरक ।
जो चाहो निज तत्व को, तोह शब्दहि लेह परख ।।
कबीर साहिब की वाणियां देश, जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि से ऊपर व परे हैं । अतः मानव मात्र उनका अधिकारी है । वह कोई ऐसा कर्मकांड नहीं बता रहे हैं जिसको केवल एक समुदाय ही मान सके । उनकी वाणियां जन जन के लिए महाऔषधि हैं ।
शब्द हमारा तू शब्द का, ध्यान देने योग्य वाक्य है । साहिब कहते हैं जो हमारे शब्द हैं इसका केवल तू अधिकारी है । यहां शब्द से अर्थ है उपदेश । कबीर साहिब कहते हैं उनके दिए उपदेश केवल उनके नहीं है बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए हैं । क्योंकि यह परम सत्य हैं । इसलिए उनके उपदेशों का मानव मात्र अधिकारी है । जो सत्य होता है वह सबका होता है । हवा, पानी, आकाश, सूर्य आदि सबके लिए हैं । इसी प्रकार उनके उपदेश सबके लिए हैं ।
सुनि मति जाहो सरक, बोहत महत्वपूर्ण है । संसार में लोग अपने गुरू के वचनों को ऐसे ही सुन कर उसको छोड़ देते हैं । वह उनका आचरण नहीं करते । क्योंकि आचरण करने के लिए त्याग की जरूरत है और हर मानव कम ज्यादा विषयासक्ति है । विषय त्याग के मार्ग में बाधक हैं । विषय से अर्थ केवल काम भोग नहीं है, अपितु मान, बढ़ाई, प्रतिष्ठा का मोह भी विषयासक्ति है । भोजन के गुणों का वर्णन करने से तृप्ति नहीं होगी, भोजन को खाने से होगी । इसी प्रकार उपदेश सुनना पर्याप्त नहीं है बल्कि उनका आचरण करना जरूरी है ।
जो तू चाहे निजतत्व को, शब्दहि लेह परख । निज तत्व बड़ा महत्वपूर्ण शब्द है । तत्व कहते हैं वास्तविकता को, सार, स्वरूप को । संसार में प्रायः दो तत्व हैं निजतत्व और परतत्व । परतत्व जड़ दृश्य है जो पांच विषयरूप हैं । निजतत्व मैं के रूप में विद्यमान अपना सार चेतन आत्म स्वरूप है जो वास्तविकता है । मनुष्य दिन रात परतत्व जड़ विषयों में दिन रात बहता है । उसको निजतत्व का भान ही नहीं है । सारे क्लेशों की जड़ यही है । जिसको अपने धन का ज्ञान न हो वह कीचड़ के दाने ही बीनेगा । इसी तरह निजतत्व के बिना मनुष्य परतत्व के कीचड़ में दाने बीन रहा है । वह विषयों में आनंद खोज रहा है । बाहर से जो कुछ भी मिल जाए वह क्षणिक है एक दिन छूटना है । पर हमारा निजतत्व स्वरूप सदैव रहने वाला है । निजतत्व के पारखी सन्तों की संगत में जाकर निज तत्व का उपदेश लेकर उसका आचरण करना चाहिए ।
कबीर साहिब कहते हैं कि निजतत्व का ज्ञान व स्थिति चाहते हो तोह "शब्दहि लेह परख " । संसार में अध्यात्म के नाम पर अपार शब्दों की गूंज है । वह सभी शब्द निजतत्व के सच्चे परिचायक नहीं हैं । अध्यात्म के नाम पर ऐसे ऐसे शब्द प्रचलित हैं जो मनुष्य को उसके निजतत्व स्वरूप से दूर लेकर जाते हैं । संसार के ज्यादा व धार्मिक लोग निजतत्व के होश में नहीं हैं । वह लक्ष्य को सदैव अपने से बाहर खोजते हैं और जीवनभर इसी में भटकते रहते हैं । कबीर साहिब तोह परम् पारखी हैं वह कहते हैं कि यदि तुम निजतत्व को चाहते हो तोह शब्द की परख करो । कौनसा शब्द सार है आपको स्वरूप तक लेकर जाना वाला है और कौनसा शब्द असार है । ग्रन्थों में लिखी बातें ही सत्य हैं , इस मोह से बाहर निकलकर निजतत्व के पारखी सन्तों की शरण करो जो सन्त खुद निजतत्व में स्थित हो गया हो वही दूसरों को इसका भेद बता सकता है ।
साहिब बंदगी
Namdhan chahiye kab aur kaise milega
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Kya ap bhi saar nam jaldi nahi dete
ReplyDeleteGuru ji pranam namdan केसे milega
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Respected Nitin daas ji, i want to talk you please send me your contact number
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Nitin daas ji sat saheb mujhe dan diksa leni h muj pr kripa kare 9756233186
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