नैनन आगे मन बसे, पलक पलक करे दौर ।
तीन लोक मन भूप है, मन पूजा सब ठौर ।।
भावार्थः मन नेत्रों के आगे बसता है और पलक पलक दौड़ लगाता है । सभी जीवों के ऊपर मन राजा बन बैठा है । सब जगह मन की ही पूजा हो रही है ।
व्याख्या: जागृति अवस्था में मन की वृति वस्तुतः नेत्रों के सामने ही रहती है । मनुष्य नेत्रों से जो जो देखता है उसी में उसका मन चला जाता है और उसे जो दृश्य प्रिय लगता है उसका वह मनन करने लगता है । रूप की तरह शब्द विषय भी ज्यादा संवेदनशील होता है । शब्दों को सुनकर मन उसका मनन करता है । मनुष्यों में गंध की आसक्ति ज्यादा नहीं होती । स्पर्श और रस इन दो विषय इंद्रियों को छूहकर ही मन आंदोलित रहता है । परंन्तु रूप और शब्द दूर से ही मन को प्रभावित करते रहते हैं । दृष्टि से देखा जाए तोह शब्द विषय का जिसे कबीर साहिब बावन कहते हैं का सबसे ज्यादा प्रभाव है । यह नाना किताबों से साधक और बाधक के पास पहुंचते रहते हैं ।
इस साखी में कबीर साहिब ने नेत्रों के विषय के संबंध में मन के पलक पलक रमने की बात कही है जो कि परम सत्य है । जागृति अवस्था में नेत्र प्रायः खुले रहते हैं और जो जो इनके सामने आता है मन उसी में रमा रहता है । दृश्यों में मन जिसे आर्कषक मान लेता है उसमें वह आसक्त हो जाता है । मनोनुकूल स्त्री को देखकर पुरुष और पुरूष को देखकर स्त्री मोहित हो।जाते हैं । पतंगे तोह मूढ़ होने के कारण दीपक की।रोशनी में जलकर मर जाते हैं । परन्तु कोई कोई नर नारी समझदार होकर भी इतने मूढ़ हो जाते हैं कि स्त्री या पुरुष के शरीर के अंगों को देखकर, वस्त्रों को देखकर, उनकी चिकनी चमड़ी को देखकर मोहित हो।जाते हैं और कुछ तोह इस मोह में इतने मूढ़ हो जाते हैं कि अपरिचित स्त्री या पुरुष के पीछे दीवाने होकर अपमान, लात और जूते तक खाते हैं । स्त्रियां पुरूष की तरफ आकर्षित होकर ज्यादा अनर्थ नहीं करती ज्यादातर पुरुष ही स्त्री की तरफ आकर्षित होकर मूढ़ हो जाते हैं । इसलिए नेत्रों के सयंम की आवश्यकता है । साहिब कहते हैं कि स्त्री को घूरकर न देखो, देखने के बाद उसके अंगों को बार बार याद न करो । स्त्री को घूरकर देखने से तुम्हारे मन में मोह और विषय वासनाओं का विष चढ़ जाएगा, मन में गंदे ख्याल आने लगेंगे । मूल वाणी इस प्रकार है -
नारी निरख न देखिए, निरखि न कीजै गौर ।
निरखत ही ते विष चढ़े, मन आवै कुछ और ।।
साहिब कहते हैं कि सारे संसार में मानो मन ही राजा हो गया है, सभी मन की ही पूजा कर रहे हैं । इसका खुलासा ऐसे है कि मनुष्य अपने आप को इतना भूल गया है कि मन जिधर जाता है वह उसी तरफ लुढ़क जाता है । कुछ लोग तोह मन के इतने गुलाम हो चुके हैं उनकी हालत दयनीय है । जो मन के गुलाम हो जाते हैं उनकी स्थिति पशु से भी बदतर है और जो मनुष्य मन की विषय वासनाओं को जीत लेता है उसी मनुष्य का महत्व है ।
साहिब बंदगी ।
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