तौ लौं तारा जगमगै, जौ लौं उगै न सूर ।
तौ लौं जीव कर्म वश डौलै, जौ लौं ज्ञान न पूर ।।कबीर साहिब का इस साखी का उदाहरण कितना सटीक है यह समझते ही बनता है । तारे रात को जगमगाते हैं । वे अपनी पूर्ण चमक दमक के साथ प्रकाश करते हैं । परन्तु उनकी चमक दमक तभी तक है जब तक सूर्य उदय नहीं होता । सूर्य के उदय होते ही वह दिखाई भी नहीं देते । यही दशा जीवों के कर्मों की है । सब जीव शुभाशुभ कर्मों के अधीन बने संसार सागर में भटक रहे हैं । यह कर्मों की जगमहागट इसलिए है कि जीव को अपने स्वरूप का ज्ञान नहीं है । जब स्वरूपज्ञानी सूर्य उदय होता है तब अज्ञान अंधकार अपने आप समाप्त हो जाता है । फिर जीव का भटकना भी बंद हो जाता है ।
जन्म मरण से छूटकर जीव का अपने स्वरूप में स्थित होना यह जीव का भटकना बंद होना है । परन्तु इसका व्यवहारिक पक्ष है देह रहते रहते मानसिक द्वन्दों से मुक्त होकर प्रशांत हो जाना जो सबके अनुभव की बात है, यही सर्वाधिक उपयोगी है । ज्ञानोदय का अर्थ यह नहीं है कि बोहत बौद्धिक ज्ञान या शास्त्रज्ञान हो जाए । ज्ञानोदय का अर्थ है अपने चेतन स्वरूप को जड़ से सर्वदा भिन्न समझकर विषय वासनाओं का अत्यंत अभाव हो जाना । इसमें न तोह बौद्धिक ज्ञान की आवश्यकता है और न ही शस्त्रज्ञान की । ऐसा नहीं है कि बौद्धिक ज्ञान व शस्त्रज्ञान वाले को स्वरूप ज्ञान नहीं हो सकता । वह भी स्वरूपज्ञानी हो सकता है । परन्तु स्वरूप ज्ञान में केवल विषयों के प्रति अनासक्ति ही मूल तथ्य है । स्वरूपज्ञानी बनने के लिए बौद्धिक व शस्त्रज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं होती । कितने ही बड़े बड़े बौद्धिक व शस्त्रज्ञान का कूड़ा कबाड़ अपने मन में रखने वाले केवल अपने मन और इंद्रियों के गुलाम बने रहते हैं । जिस ज्ञान से आत्मशांति मिलती है वह बौद्धिक व शस्त्रज्ञान नहीं है , वह ज्ञान है अपने स्वरूप का ज्ञान और विषयों से वैराग्य । ज्ञान का वास्तविक पक्ष पवित्र रहनी है । पवित्र रहनी का अर्थ है गलत आदतों और समस्त विषयों वासनाओं से सर्वदा के लिए मुक्ति ।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, हर्ष, शोक आदि के वश में दुखी होकर रहना ही जीव का भटकना है । यह सब स्वरूप के अज्ञान और विषयों के प्रति आसक्ति के कारण होता है । जब स्वरूपज्ञान का सूर्य उदय हो जाता है तोह सभी विषयों विकारों के प्रति वैराग्य का भाव जाग जाता है । विषयसक्ति वश ही तोह इच्छाएँ उठती हैं और इच्छाएं ही जीव को भटकाती हैं । जिसने इच्छाओं का त्याग कर दिया, वह शांत हो गया । इच्छाओं से मुक्त शांत हो चुका जीव हमेशा के लिए जन्म मरण के भटकाव से मुक्त हो जाता है ।
साहिब बंदगी
मदन पति साहेब कहां शरीर छोरे थे।
ReplyDeletePlease हमको बताय साहेब
साहेब
बंदगी
साहेब