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परम् आत्मा और जीव आत्मा के बारे में जानें ।



ज्यों पये मद्धे घीव है, त्यों रमैया सब ठौर ।
कथता बकता बहुत है, मथि काढ़े सो और ।।
इस बोलते का खोज़ कर, जिसका इलाही नूर है ।
जिन प्राण पिंड सवारिया, सो हाल हज़ूर है ।।
गज वाजि द्वारे झूमते, सो रातों का जहूर है ।
काजी पण्डित वेद पढ़ि, करता फिरे मगरूर है ।
मुर्शिद शब्द चेता नहीं, यही तोह गफलत कूर है ।।
कहे कबीर घट चेत ले, तेरे में तेरा नूर है ।
नूर पर जहूर दर्शे, जब साहिब भरपूर है ।।
संसार में रहने वाले जीवों को मोक्ष मार्ग से रोकने वाली माया बड़ी प्रबल है, तथा अनेक प्रकार से कष्ट देने वाली है, यह माया आत्मा के स्वरूपों को भूला देती है ।
जीवात्मा - सत, रज, तम यह तीन गुण और शुभाशुभ कर्म का कर्ता भोक्ता इस सबके सहित जो त्वम पद अविद्या के बंधन में चेतन आत्मा है उसे जीव कहते हैं ।
परमात्मा- यहां महाचेतन सत्यपुरुष परमात्मा प्रकृति, जीव ईश्वर, ब्रह्म, ज्योति, अनहद और बावन अक्षरों आदि से परे है । इसी को सार शब्द, सत्यनाम, निःअक्षर आदि नाम भी कहते हैं । वह उपमा रहित है इसी का उपदेश कबीर साहिब का है ।
साखी -
आत्म चिन्ह परमात्म चीन्हे, संत कहावे सोई ।
यहे भेद काया से न्यारा, जाने विरला कोई ।।
वह परमात्मा अत्यंत सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है ।
राई को तो बीस कर, फिर बीसों के बीस ।
तासे में ही रहे, अधर झलक्के शीश ।।
राई के साठवां भाग से भी सूक्ष्म है । यह दृश्य पदार्थों की भांति प्रत्यक्ष नहीं दिखलाता । परमात्मा की तुलना किसी के साथ नहीं हो सकती । ऐसा प्रत्यक्ष भी नहीं और अनुमान का विषय भी नहीं । वह इतना उतना भी नहीं कहा जा सकता ।
साखी -
एक कहूँ तोह है नहीं, दोय कहूँ तोह गारि ।
है जैसा रहे तैसा, कहे कबीर विचारी ।।
उसका जन्म नहीं मरण नहीं, सूखता नहीं भीगता नहीं, छिदता नहीं, वह गुण रहित और मल रहित है । निरवयव है, सजातीय - विजातीय तथा अहंकार से रहित है और इन्द्रिय रहित होकर भी सब कुछ कर सकता है । परमात्मा सर्वव्यापी अचित्य, आवर्णनय, निष्क्रिय, सदा पवित्र है और संस्कार रहित है । वह सर्वव्यापी है उससे बड़ा कोई और नहीं और न ही उसके बराबर है । वह अद्वितीय है, सदा- चित आनन्द है । वह क्षर अक्षर के परे निःअक्षर है ।
सार शब्द कह पावे कोई ।
जाका सतगुरू पूरा होइ ।।
देह में आने से अल्पज्ञ विदेह रहने का सर्वज्ञ है । वह समुन्दर है तोह यह बूंद है ,वह जल है तो यह लहर है , वह अंशी है तोह यह अंश है, वह परमात्मा तोह यह आत्मा है । वह अनिर्वचनीय, अचिंतनीय, अकल्पनीय है । पारब्रह्म के विषय में बोलना अत्यंत तत्व को नष्ट करना है । ईश्वर एक है नाम अंनत हैं , लेकिन सत्य सर्वोपरि नाम है । सत्य के भास हो जाने पर सत्य ही सत्य दृष्टिगोचर होता है, यह यों कहना चाहिए कि दृष्टि स्वयं सत्य बन जाती है । यह आत्मा सत्य है और सत्य का वाचक नाम भी सत्य है । सत्य स्वयं सत्य और तीनों कालों और सभी युगों में सत्य है ।
एकै जनी जना संसारा ।
कौम ज्ञान से भयऊ न्यारा ।
ब्रह्न वही जो सबघट व्यापे, बाहर भीतर सोई ।
जासे रचना होत सकल की, वह सबसे न्यारा होइ ।।
साहिब बंदगी

Comments

  1. जीव क्या है.जीव और आत्मा अलग अलग है. आत्मा कैसे उत्पन्न हुई.? साहेब बंदगी

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