हरि ठग ठगत ठगौरी लाई,
हरि के वियोग कैसे जियहु रे भाई ।।
को काको पुरूष कौन काको नारी,
अकथ कथा यम दृष्टी पसारी ।।
को काको पुत्र कौन काको बाप,
को रे मरे को सहे संताप ।।
ठगि ठगि मूल सबन का लीन्हा,
राम ठगौरी काहू न चीन्हा ।।
कहहि कबीर ठग सो मन माना ,
गई ठगौरी का जब ठग पहिचाना ।।
बीजक के इस शब्द में कबीर साहिब ज्ञान को हरने वाले हरि शब्द के बावन अक्षर पौ माया तथा शब्द मन्त्रों का उपदेश करने वाले गुरु लोगों के प्रति संकेत किया है ।
इस संसार में परमात्मा के वियोगी जिज्ञासु साधकों को अज्ञानी गुरुवों लोगों ने बावन अक्षरों के अज्ञान के द्वारा उनके आत्म ज्ञान को ठग लिया है । अतः ऐसे परमात्मा के प्रेमी वियोगी साधक किस प्रकार सुख शांति पा सकते हैं ।
इस संसार में न तोह कोई किसी का पति है और न कोई किसी की स्त्री । स्वस्वरूप में सब चाहे वह पुरूष हो या स्त्री एक चेतन आत्मा ही है । अज्ञानी गुरुवा लोगों ने स्त्री पुरूष जैसे द्वंदों का झगड़ा फैला दिया है । इसी तरह न तोह कोई किसी का पिता है और न किसी का पुत्र । माता पिता, पुत्र का झूठा नाता दिखावटी है । अज्ञान वश पुत्र की मृत्यु पर पिता दुखी होता है और पिता की मृत्यु पर पुत्र दुखी होता है । गुरुवा लोगों की अज्ञानता रूपी गुरूवाई ने सभी साधकों के आत्म रूपी स्वस्वरूप ज्ञान को ठग लिया है । बावन अक्षरों द्वारा निर्मित राम शब्द ने सबको मुक्ति का प्रलोभन देकर ठग लिया है । बावन अक्षरों द्वारा निर्मित विभिन्न मंत्र, वेद आदि ज्ञान की इस ठगौरी को कोई आज तक समझ ही नहीं पाया है । कबीर साहिब कहते हैं कि संसारी मनुष्य इसी बावन अक्षर रूपी ठग पर विश्वास करते हैं । इसी के द्वारा अपनी मुक्ति चाहते हैं, जो सर्वदा असंभव है । मनुष्य इस अज्ञानता जन्य महाठगौरी से तभी बच पाएगा, जब वह अज्ञानी गुरुवों लोगों द्वारा सुझाए गये बावन अक्षर रूपी अज्ञान को समझने का प्रयास करेगा ।
कहने का आशय यह है कि जब तक मनुष्य ज्ञान की कसौटी पर विवेक द्वारा राम, आत्मा, परमात्मा, खुदा, गॉड के चेतन्य स्वरूप का चिंतन नहीं करेगा । तब तक वह आत्मा से उत्पन्न बावन अक्षरों के द्वारा निर्मित मंत्र, कलमा आदि के जाप, पाठ पठन में विश्वास करके स्वस्वरूप ज्ञान से सर्वदा वंचित रहेगा तथा मंत्र जाप, तप, योग के द्वारा ही आत्म कल्याण की बात सोचता रहेगा , जो सर्वदा असम्भव है ।
साहिब बंदगी
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