सत्य क्रिया निर्वाण है, है तन मन से भिन्न ।
मन पवन दृढ़ कर गहे, सत्य नाम निज चीन्ह ।।
सत्य क्या है ? कैसा है ? कबीर साहिब कहते हैं सत्य नाम रूप रहित है, उसे किसकी उपमा दूं ? यह सत्य परम प्रकाशित है, सर्वत्र है, तन मन से अलग है । जहां सूर्य नहीं, नक्षत्र पति नहीं, नक्षत्र नहीं, जिसके जानने से देखने से जो फल सिद्ध होता है, दूसरा और सिद्ध नहीं । जिसके सुख से बढ़कर अन्य सुख नहीं , जिसके समान अन्य सौंदर्य अथवा ज्ञान नहीं । जिसके दर्शन से और श्रेष्ठ दर्शन नहीं, जिसके दर्शन होने से अन्य किसी के दर्शन की अभिलाषा नहीं, दर्शन से मतलब अनूभूति से आंखों वाले दर्शन से नहीं । वही सत्य है ।
इसी से राम, कृष्ण आदि प्राणी और अन्य जीवित प्राणी हुए हैं । इस सत्य दर्शन के लिए हर प्राणी को सदा तत्पर रहना और उत्साही बनकर मंथन करते रहना चाहिए ।
मथे शब्द जब आत्म जागे, टरे न दसवें दरसों ।
सत्य की खोज़ ही ईश्वर की खोज़ है । ईश्वर की हस्ती में विश्वास न रखने वाले नास्तिक भी सत्य पर विश्वास करते हैं ।
ईश्वर के नाम तो अनन्त हैं , लेकिन सत्य सर्वोपरि नाम है , सत्य की प्राप्ति के साधन कठिन हैं इससे यह नहीं कह देना चाहिए कि सत्य है ही नहीं । सत्य प्राप्ति के लिए सत्य के नियमों का पालन करना चाहिए ।
सब मन्त्रण के बीज हैं, सत्य नाम तनसार ।
जो कोई जन ह्रदय धरे, सो जन उतरे पार ।।
सत्य सब मंत्रों का बीज है और तत्वों का सार भी वही है । कोई लाखों प्राणी में से एक प्राणी ही उस सत्य को प्राप्त कर, अपने ह्रदय में धारण कर संसार सागर से पार होता है ।
लेकिन जीव की क्षुद्रता इतनी अपार है कि वह सत्य की अपेक्षा में बहुत मस्त रहता है । मूर्ख प्राणी संसार में रहकर यह मेरी देह, यह मेरी स्त्री, मेरा पुत्र, मेरा मित्र, मेरा दास, मेरी सम्पत्ति, पूजा पाठ, यज्ञ, व्रत ऐसे मैं मैं में बंध कर उसी में लवलीन रहता है और अपनी मनुष्य देह की उत्तम आयु को इसी में गवा देता है । उस प्राण के अधिपति परमात्मा की खोज़ में किसी का चित्त नहीं लगता । कर्मानुसार इस शरीर का आर्वजन और विजर्सन हुआ करता है । जो इस नाशवान शरीर का अभिमान करता है वह मरुभूमि में जल की आशा करने वाले मृग के समान है , सत्य की उपासना करने वाले को किसी और की उपासना नहीं करनी चाहिए । क्योंकि सब सत्य से भरपूर है । शक्कर खाने वाला बबूल वृक्ष की इच्छा नहीं करता , उसे तो शक्कर चाहिए, वह शक्कर की खोज़ करता है ।
राम के कहे जगत गति पावे, खांड कहे मुख मीठा ।
राम के कहने से मुक्ति मिलती है तोह खांड खांड कहने से मुख भी मीठा होना चाहिए । खांड खांड कहने वाला खांड की प्राप्ति नहीं कर सकता इसलिए युक्ति करना चाहिए तब मुख मीठा हो सकता है । युक्ति से मुक्ति है वैसे ही संसार में रहकर सत्य की प्राप्ति के लिए सत्संग की आवश्यकता है, तब हवा की तरह दौड़ने वाला मन एकाग्र हो सत्य को पहचान सकता है । परमात्मा के साथ जिसकी सच्ची लग्न लगी है उसकी मधुरता का स्वाद वही जान सकता है । अन्य उसकी मधुरता की व्याख्या नहीं कर सकता , वह अनुपमेय है, जो उसे जानता है वही जानता है । वह कहने सुनने लिखने पढ़ने का विषय नहीं है । एक अटल प्रेमी को ही सत्य की प्राप्ति होती है ।
साहिब बंदगी
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