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हिन्दू और मुसलमानों की भूल ।



कितनो मनावो पाँव परि, कितनो मनावो रोय ।
हिन्दू पूजे देवता, तुर्क न काहू होय ।।

क्या हिन्दू क्या मुसलमान, यह दोनों जीवित प्राणियों में परमात्मा को नहीं देखते । यह या तोह मिट्टी, पत्थर, काष्ट, अष्टधातु की मूर्तियों में परमात्मा को देखते हैं या शून्य आकाश में देखते हैं । इसलिए वह परमात्मा को प्रेम समर्पण के लिए भेड़, बैल, भैंस, बकरा, गाय, ऊँट, मुर्गा, सूयर आदि की बलि या कुर्बानी देते हैं जो कि घोर जंगलीपन है । जीवित देहधारी प्रत्यक्ष देवता है, उन्हें पत्थर के देवता या शून्य आकाश में स्थित किसी अल्लाह के नाम पर मार काट देना कितनी अज्ञान की बात है । न तोह पत्थर पिंडी आदि में कोई ईश्वर है और न ही शून्य आकाश में कोई अल्लाह है । मानव देहि तोह प्रत्यक्ष देवता है,  ईश्वर का ही अंश सभी जीवित देहों में समाया हुआ है , इन जीवित प्राणियों की पूजा करनी चाहिए इनका सत्कार करना चाहिए । परंतु आदमी के दिमाग को लकवा मार गया है वह पत्थरों में ईश्वर देखता है पत्थर पूजता है, शून्य आकाश में किसी ईश्वर को देखता है । और उसके नाम पर जीवित प्राणियों को मारता है । जिंदा प्राणियों में ईश्वर को नहीं देखता ।

कबीर साहिब कितना मार्मिक वचन कहते हैं कि चाहे जितना भी हाथ जोड़ कर समझा लो, कितना ही पैर पकड़ कर समझा लो, कितना ही रो धो कर समझा लो, पर न तोह यह हिन्दू पत्थरों में ईश्वर देखना छोड़ेंगे और न ही मुसलमान शून्य आकाश में । तुर्क न काहू का होय में यही अर्थ है कि वह न तोह पत्थर में ईश्वर देखता है न जीवित मनुष्य में वो तोह शून्य आकाश में उसे खोजता है पुकारता है । परन्तु कबीर साहिब कहते हैं न तोह पत्थर में परमात्मा है और न ही शून्य आकाश में । परमात्मा तोह अपने अंश के रूप में सभी जीवित प्राणियों में है । अतः जीवित प्राणियों से प्रेम करना और उनपे दया करना ही परमात्मा ही भक्ति है । सब जीवों में समाई हुई आत्मा उस परमात्मा का ही अंश है, आत्मा से अलग परमात्मा को खोजना बोहत अज्ञान है । जिसने आत्मा को जान लिया उसी ने परमात्मा को जाना है ।

मुसलमान भले ही पत्थर की पूजा न करने की बात करते हों और शून्य में अपना अल्लाह खोजते हैं पर असल में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही पत्थरों को पूजने वाले हैं । हिन्दू मन्दिर में पत्थरों की मूर्ति को पूजता है तोह मुस्लिम मक्के मदीने में पत्थर की दीवार को पूजता है और उसको चूमता है ।

इस साखी में हिन्दू और मुस्लिम की बात बताई गयी है दोनों में जो भी विवेकी होंगे, वो न तोह पत्थरों को पूजते है और न ही शून्य में उसे पुकार करते हैं । वह देवताओं, अल्लाह आदि के नाम पर जीव हत्या भी नहीं करते बल्कि वह तोह सभी जीवों से प्रेम, दया और रहम का बर्ताव करते हैं ।
साहिब बंदगी

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