शब्द हमारा आदि का, पल पल करहू याद । अंत फलेगी माँहली, ऊपर की सब बाद ।। कबीर साहिब जीव को बारम्बार बोध देते हैं । वह जीव को अपनी वाणियों से जगाकर अपने स्वरूप ज्ञान व स्वरूप स्थिति की ओर खींचते हैं । साहिब कहते हैं मैं तुमको स्वरूपज्ञान की याद दिलाता हूं । अपने स्वरूप को पल पल याद करो । स्वरूप ज्ञान वाणियों का चिंतन मनन करने से जीव स्वरूप ज्ञान के प्रति दृढ़ हो जाता है । इसका फल यह होता है कि जीव माँहली हो जाता है यानी अपने निज स्वरूप के महल में भवन में निवास करने लगता है । जीव का महल क्या है ? क्या जो ईंट, सीमेंट, लोहे या लकड़ी से खड़ा कर लिया यह जीव का महल है ? बिल्कुल नहीं । यह तोह इस शरीर के रहने के लिए दो चार दिन का मुसाफिर खाना है । जीव का महल तोह उसकी अपनी स्वरूप स्थिति है । आत्मस्थिति या स्वरूप स्थिति ऐसा पक्का महल है जो न कभी गिरने वाला है न कभी छूटने वाला है । जेठ की दोपहर में जलता, वर्ष में भीगता, पोह की सर्दी में कांपता मनुष्य जब अपने मकान में आ जाता है तोह कितना आराम अनुभव करता है, कितना आनंद अनुभव करता है, यह सभी का अपना अपना अनुभव है । यह तोह क्षणिक है । क्योंकि प...
कबीर विज्ञान आश्रम, बीरापुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, प्रथम सतगुरू मदनपति साहिब, वर्तमान सतगुरू वैराग दास साहिब