बाज़ीगर का बांदरा, ऐसे जीव मन के साथ ।
नाना नाच नचाये के, ले राखे अपने हाथ ।।
जैसे बाज़ीगर बन्दर को नचाता है उससे नाना तरह के खेल कराता है, यही स्थिति जीव की हो गयी है जो मन के वश में आकर मन के अनुसार नाचता रहता है ।
जीव स्वतंत्र चेतन है, मन एक आभास मात्र है । परन्तु कैसा आश्चर्य है सत्य चेतन जीव असत्य मन के हाथ बिक गया है । बाज़ीगर बन्दर को अपनी डोरी से बांध कर रखता है, फिर उससे कई तरह के खेल करवाता है । खेद है कि ऐसे मन जीव को अपनी आसक्ति की डोरी में बांध कर रखता है और जीव को अपनी इच्छा अनुसार नचाता है । आप देखते नहीं, कैसे पढ़े लिखे सभ्य लोग बीड़ी सिगरेट, शराब, तम्बाकू आदि की आदत बना लेते हैं । और उसकी आसक्ति में सदैव अपने मन की गुलामी करते हैं । वह समझते भी हैं कि यह सब गलत है इसके दुष्परिणाम हैं फिर भी अपने मन को नहीं रोक पाते । इसी प्रकार बीड़ी सिगरेट शराब आदि की आसक्ति में बंधा मनुष्य पूरी जिंदगी मन के अनुसार नाचता रहता है ।
यह विषय की इच्छाएं ही तोह जीव को नाना नाच नचवाती हैं । यदि जीव विषयों की इच्छा को छोड़ दे तोह कौन उसे विवश कर सकता है । जीव का अपना स्वरूप शुद्ध चेतन का है, उसे अपने स्वरूप को जानना चाहिए । जो बीड़ी सिगरेट शराब आदि का सेवन नहीं करता वो फिर कहाँ मन के अनुसार नाचता है । मन के अनुसार नाचने से अर्थ है विषयों की आसक्ति के वश होकर नाचना । विषयों के प्रति आसक्ति ही जीव के बंधन का कारण है और विषयों की आसक्ति का त्याग ही मोक्ष है ।
मन जीव को नचाता है इसका यह अर्थ नहीं कि मन कोई सबल जानवर है जो जीव को पकड़कर नचाता है । मन तोह एक काम काज का साधन है उसका काम है इच्छा करते रहना । जब हमें संसार के नाना विषयों की आसक्ति बन जाती है तोह हम उन विषयों में खिंच खिंचकर भटकते हैं और कहा जाता है कि मन हमें नचा रहा है । यदि विवेकपूर्ण जीवन जीये और विषयों की आसक्ति को छोड़ दें, विषयों के प्रति अनासक्ति आ जाने से हमारा मन शुद्ध और संयमित हो जाता है । फिर वही मन की शांति का कारण बनता है । विषयों की आसक्ति ही जीव को भटकाती है और विषयों के प्रति अनासक्ति ही मन को शांति अनुभव करवाती है ।
साहिब बंदगी
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