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भेड़ों के झुंड न बनो, पारख विवेकी बनो ।



कैसी गति संसार की, ज्यों गाडर की ठाट ।
एक पड़ा जो गाड़ में, सबै गाड़ में जात ।।

कबीर साहिब इस साखी में कह रहे हैं कि संसार मे लोगों की दशा भेड़ों के झुंड जैसी है । यदि एक भेड़ गड्ढे में गिर जाए तोह उसके पीछे सारी भेड़ें गड्ढे में गिरती चली जाती हैं ।

विस्तार से जानते हैं, एक आदमी ने कहा कि अमुक व्यक्ति पानी में फूंक मारकर या छू कर देता है, तोह उस पानी के सेवन से सभी ऋद्धि सिद्धियां मिलती हैं । तोह इस बात के पीछे पढ़, अनपढ़, गांव वाले, शहरी सभी लाइन लगा के खड़े हो जाते हैं । तांत्रिक, सोखा, ओझा, बाबा, ज्योतिष आदि जो खुद को महात्मा घोषित किये हुए होते हैं, संसार के लोगों को मूर्ख बना ठगने में लगे रहते हैं । और इनके पीछे मूर्खों की लाइन लगी रहती है । जिसमें सामान्य जनता से लेकर प्रोफेसर, अधिकारी, उच्च अधिकारी, नेता, मंत्री, आचार्य, वेदाचार्य आदि सब भेड़ बने गड्ढे में गिरते हैं ।
कर दो हल्ला कि अमुक गांव में , वन में, पेड़ के नीचे कोई देवी निकली है, देवता निकला है तोह देखते ही देखते वहां मूर्खों की भीड़ पहुँचने लगेगी और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए अपना तन मन धन समर्पण करने लगेगी ।
अमुक तीर्थ में जाने से, उसका नाम लेने से, उस नदी में नहाने से सारे पाप कट जाते हैं, स्वर्ग मोक्ष की प्राप्ति होती है । अमुक मन्त्र जपने से ऋद्धि सिद्धि मिलती है । अमुक पर्व या तिथि को प्रयाग, मथुरा, अयोध्या, काशी, काबा  में जाने से नहाने से पाप कटते हैं, मोक्ष मिलता है । ऐसी ऐसी अनेक भ्रांतियां जो महारथी लोग फैलाते रहते हैं और लोग इनके पीछे पागल बने भेड़ बन गड्ढे में गिरते रहते हैं । क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम, क्या ईसाई, क्या अन्य मत सभी में लोग अंध विश्वास के शिकार हैं । कोई विरला ही होता है जो इस भेड़ चाल से बचा रहता है ।

हैरानी होती है कि दूसरों के मतों की ऊल फज़ूल बातों को लोग अंध विश्वास कह देते हैं और अपने मत की ऐसी बातों को परम् सत्य मानते रहते हैं । अपने मत की भ्रांतियों को सत्य मानने के पीछे स्वार्थ छुपा होता है । जब जिसे शुद्ध परख दृष्टि मिल जाती है तोह सारे अंध विश्वास, भ्रातियां का परित्याग कर देता है चाहे वो उसके अपने धर्म का हो चाहे दूसरे के धर्म का । परख दृष्टि का अर्थ है निष्पक्ष विवेक, नीर क्षीर विवेक, गुण दोषों की पूर्ण परीक्षा ही परख दृष्टि है ।
साहिब बंदगी

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