वस्तु कहिं खोजे कहिं, केहि विधि आवै हाथ ।
कहे कबीर तभी पाइये, जब भेदी देवे साथ ।।
कबीर साहिब के जिज्ञासु भगत सार शब्द को लेकर उलझन में रहते हैं कि सार शब्द किस गुरू से मिलेगा ?
तोह साहिब के भगतो एक बात जान लो कि सार शब्द कहते हैं निचोड़ को जो सबका निचोड़ है सार है, उससे आगे कुछ नहीं है । जैसे दूध का सार घी है और यह सार शब्द कोई दुनिया की वस्तु नहीं कि जो आप गुरू के पास गये और गुरू ने आपको पकड़ा दी कि यह लो बेटा यह है सार शब्द । गुरू का काम है राह बताना चलना आपको ही है गुरू आपको पहले से तय की गयी मंजिल नहीं देने वाला ।
तोह सार शब्द का भेदी गुरू होता है सार शब्द देने वाला कोई गुरू नहीं है । सार शब्द एक गुप्त खज़ाना है गुरू आपको उस ख़ज़ाने तक पहुंचने का भेद देगा, अब खज़ाना लाने आपको ही जाना है, गुरू आपके लिए खज़ाना लाने नहीं जाने वाला । गुरू ने आपको भेद दे देना है कि यहाँ से खुदाई करो आपको पानी मिलेगा । अब खुदाई आपको ही करनी है आप कितने दिन में करोगे कितनी मेहनत से करोगे यह सब आप पर निर्भर है । गुरू आपके लिए खुदाई नहीं करने वाला । गुरू आपको दूध से घी बनाने की विधि बता सकता है घी आपको ही निकालना है गुरू बना बनाया घी आपको नहीं देने वाला ।
यह सब घी, खज़ाना, पानी आदि सब रूपक हैं समझाने के लिए, सार शब्द न तोह पानी है न घी है न खज़ाना है । वो दुनियावी वस्तुओं से अलग वस्तु है । वो वस्तु तीन लोक से परे है इस देह के बाहर है, उसको किसी मंत्र जप आदि से नहीं पाया जा सकता वो बावन से परे है । सार शब्द का भेदी गुरू अपने साधक को बता देता है कि यह मार्ग है जो आपको देह से बाहर लेकर जाएगा जिससे आपकी सुरति उस विदेही शब्द को अनुभव कर सकेगी । पर इसके लिए बोहत लग्न और मेहनत की जरूरत होती है जैसे दुनिया की कोई वस्तु लेने के लिए आपको मेहनत करनी पड़ती है तब जाके वो वस्तु मिलती है । ठीक उसी प्रकार सुरति को सार शब्द की अनुभूति भी काफी लग्न और निरंतर अभ्यास से होगी ।
जैसे कि ऊपर साखी में साहिब ने कहा है कि कहे कबीर तभी पाइये, जब भेदी देवे साथ । तोह सार शब्द गुरू नहीं देगा, पर सार शब्द का भेद आपको गुरू से मिलेगा और उसके लिए गुरू ऐसा होना चाहिए जिसे सार शब्द का भेद तोह पता ही हो और उसने सार शब्द को प्राप्त भी कर लिया हो । जिसको सार शब्द का भेद नहीं पता ऐसे गुरू से नाम दीक्षा नहीं लेनी चाहिए ।
साहिब बंदगी
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