मानुष जन्म दुर्लभ है, बहुर न दूजी बार । पक्का फल जो गिर पड़ा, बहुर न लागै डार ।। इस संसार रूपी भवसागर में अनेकों देह हैं जिसे चौरासी कहा जाता है, जैसे पशु, पक्षी, कीट, पतंगे, मनुष्य आदि । पर मनुष्य को छोड़कर सभी देह केवल भोग योनियां हैं, इनमें सोचने समझने का विवेक नहीं होता । जीव आत्मा को कर्मानुसार अलग अलग देह में भटकना पड़ता है, केवल मनुष्य देह में आकर ही जीव इस भवसागर को पार कर सकता है । इस साखी में कबीर साहिब ने इसी बात पर जोर दिया है कि यह मनुष्य देह बोहत दुर्लभ है, इसी में जीव आत्मा की कल्याण साधना हो सकती है । इस मनुष्य देह को पाकर इसे विषयों विकारों में मत गवाओ, मनुष्य देह मिलना बोहत कठिन है । जो मनुष्य देह पाकर इसे पशुओं की भांति विषय भोगने में गवा देता है वह कितना भोला व नासमझ है । मनुष्य देह की दुर्लभता को कबीर साहिब एक पेड़ के पक्के फल से समझाते हुए कहते हैं कि जैसे पेड़ से पक्का हुआ फल गिर पड़ता है और वापिस पेड़ पर नहीं लगता, उसी तरह जब जीव देह को छोड़ देता है तोह वापिस पुनः उसी देह में प्रवेश नहीं कर सकता । दूसरा मानव जन्म मिलना भी आसान नहीं है, जब उसके अच्छे कर्मों...
कबीर विज्ञान आश्रम, बीरापुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, प्रथम सतगुरू मदनपति साहिब, वर्तमान सतगुरू वैराग दास साहिब