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Showing posts from April, 2018

जीव आत्मा कर्म के चक्कर में पड़कर जन्म मरण में कैसे भटकने लगी ?

कर्म फांस छूटे नहीं, केतो करो उपाय । सतगुरू मिले तोह ऊबरे, नाहिं तोह धक्का खाए ।। सृष्टि के आरंभ में सब जीव अव्यक्ति रूप में सार शब्द सत्यनाम में समाए हुए थे । और जब जीव आत्मा चाहती है कि वह एक से अनेक होऊं तोह एक आत्मा की सुरति अधोमुखी होती है फिर रज सत तम आदि तीन गुणों और पांच तत्वों जल, आकाश, वायु, अग्नि, भूमि आदि के माध्यम से आत्मा अलग अलग भूमिका कर रूप में प्रकट होती है । अलग अलग रूप को चार खानी के रूप में भी जाना जाता है चार खानी है अंडज, पिंडज, उष्मज़ और स्थावर आदि । प्रत्येक भूमिकाओं में सभी को सृष्टि स्वभावनुसार मन तथा माया के आवरण से नाना प्रकार के कर्मों में लिप्त होकर और कर्मों के कारण उन्हें फिर कर्मों के फल भोगने के जो ईश्वरीय नियम था उसको जीव आत्मा भोगने लगी । जो जैसा कर्म करता है उसको उसी के माफिक वैसा ही शरीर मिल जाता है । परन्तु उसे देह द्वारा उसके पिछले कर्मों का फल भोगने के साथ साथ फिर दूसरे नये कर्म भी उत्तपन्न हुए फिर नये कर्मों के फल भोगने के लिए नया शरीर धारण करना पड़ा और उसमें जो नए कर्म होते गए उनको भोगने के लिए फिर नया शरीर धारण करना पड़ा । इसी तरह हमारे औ...